आगामी रविवार को बिलासपुर में महफिल शाम-ए-रक्स का आयोजन किया जाएगा, जिसमे छग के प्रतिष्ठित 33 कथक कलाकार प्रस्तुति देंगे।
श्री कला मंजरी कथक संस्थान के आयोजन की जानकारी रितेश शर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस कर दी।
गजल और गीतों से सजा महफिल शाम-ए-रक्स 22 दिसंबर को सिम्स ऑडिटोरियम में होगा। जिसमे छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित 33 कथक कलाकार प्रस्तुति देंगे। इस कार्यक्रम में कथक की मुजरा शैली की प्रस्तुति होगी।
यह बातें वैदिक कॉन्वेंट में आयोजित प्रेस वार्ता में श्री कला मंजरी कथक संस्थान सचिव और कथक सम्राट पंडित बिरजू महर के शिष्य रितेश शर्मा ने कार्यक्रम के विषय में चर्चा करते हुए कही। उन्होंने बताया कि लखनऊ और अवध कथक तहजीब के ऊपर आधारित कार्यक्रम महफिल शाम-ए-रक्स आयोजन दिनांक 22 दिसंबर दिन रविवार को सिम्स ऑडिटोरियम में होने जा रहा है। उक्त कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित 33 से अधिक कथक कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे।
इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि 19वीं शताब्दी के लखनऊ घराने की तहजीब और नृत्य कला को पहली बार शहर में विजुअल ग्राफिक्स के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा। यह कार्यक्रम लखनऊ अवध की परंपरा के आधार पर कथक की नजाकत और अदा को समर्पित एक कार्यक्रम है। जिन्होंने कत्थक की लुप्त होती विधा को 19वीं शताब्दी में सहेज कर रखा था। आज कथक की जो भी स्थिति है उसके संरक्षण का सबसे पहला प्रयास लखनऊ और अवध के कथक कलाकारों द्वारा किया गया था। इसलिए उन कलाकारों के सम्मान में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
मुजरा कथक की एक लुप्त होती शैली है जिसका मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ अभिनंदन का भी रहा है। मुजरा उर्दू का एक ऐसा शब्द है जिसे आमतौर पर सामाजिक दृष्टिकोण में बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता है लेकिन जहां तक साहित्यिक गहराई की बात की जाए तो मुजरा का मतलब होता है अभिनंदन या स्वागत। महाराज शिवाजी के शासनकाल में भी महाराष्ट्र में मराठी भाषा के साथ उर्दू का प्रयोग होता रहा और वहां पर सभी लोग शिवाजी को मुजरा कहते थे, मतलब कहते थे अभिनंदन या सलाम। तो मुजरा नृत्य भी मुजरा से संबंधित है जिसका मतलब होता है किसी भी अतिथि या अभ्यागत के स्वागत या अभिनंदन में किया जाने वाला स्वागत नृत्य। स्वागत नृत्य की परंपरा भारत के नृत्य ऐतिहासिक बड़ी पुरानी है और समय के साथ परिवर्तन होने के कारण ही अभिनंदन नृत्य का नाम उर्दू साहित्य से जुड़ते जुड़ते हो गया मुजरा। तो मुजरा की जो शैली है, कथक की एक उपशैली कही जाती है। जिसमे लगभग 30 से 35 गीत और गजल के माध्यम से प्रतुतिया होगी।
महफिल शाम-ए-रक्स में विजुवल ग्राफिक के माध्यम से कलाकार प्रस्तुत करेंगे। इस कथक परंपरा को मूर्त रूप देने देने में पंडित बिरजू महाराज जी का प्रमुख योगदान रहा है इसलिए इस कार्यक्रम में उनकी कला की विशेष झलकियां नजर आएंगी और यह कार्यक्रम उन्हीं को समर्पित है। इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष श्री डी . के. शर्मा कोषाध्यक्ष शीला शर्मा उपस्थित रहे।